शादी क्या है? शादी क्या है? दो दिलों का मिलन. शादी बेसक लड़की या लड़के की होती है लेकिन रिश्ता पूरे परिवार से जुड़ता है। इसलिए मैं यह कहना चाहूंगी कि शादी का फैसला सोच समझ कर लेना चाहिए और चाहे आपको शादी के लिए इंतजार करना पड़े तो इंतजार करना लेकिन किसी के दबाब में आकर शादी मत करना . क्योंकि जिंदगी का सवाल है तो सोच विचार कर फैसला लेना क्योंकि एक बार आपने गलत निर्णय ले लिया तो तुम जिंदगी भर पछताओगे तो रोज-रोज के पछताने से पहले ही देरी कर दो वो अच्छा है कम से कम आपकी जिंदगी वैसी होगो जैसा तुम चाहते हो।
दुनिया के कुछ खास हिस्सों में, बच्चों को जो आज़ादी अभी मिल रही है, उसकी वजह से, शादी शब्द की शायद कुछ नकारात्मक छवि बन गयी है। कुछ समाजों में युवा लोग अब शादी को एक खराब चीज़ समझते हैं। आप जब युवा हैं तो आप इसके खिलाफ होते हैं क्योंकि आपका शरीर कुछ खास तरह का है। तब शादी एक तरह का बंधन जैसा लगता है जो आपको बांधता है। आप कुछ खास तरह से कुछ करना चाहते हैं। पर, धीरे धीरे, जब शरीर कमज़ोर पड़ता है तो फिर से आपको लगता है कोई ऐसा हो जो आपके लिये प्रतिबद्ध हो।
यह सोचना बहुत लड़कपन या अपरिपक्वता की बात है कि जब मैं मजबूत हूँ तब मुझे कोई नहीं चाहिये पर जब मैं कमज़ोर हो जाऊँ तो मुझे लगता है कि कोई मेरे साथ हो। वास्तव में कोई भागीदारी या संबंध तभी बनने चाहिये जब आप अपनी खुशहाली के शिखर पर हों। जब आप कमज़ोर हो जाते हैं तो घबराहट में किसी भी तरह से रिश्ते बनाना चाहेंगे। जब आप अच्छे हैं, अपने जीवन के शिखर पर हैं, तब आपको वो भागीदारी बनानी चाहिये जो जीवन के उतार – चढ़ावों पर आपका साथ दे।एक मनुष्य के रूप में आपकी शारीरिक , भावनात्मक, मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और आर्थिक ज़रूरतें हैं। लोग इन चीजों के बारे में जागरूकता के साथ सोचना नहीं चाहते, क्योंकि उन्हें लगता है कि ऐसा करने से उनका शादीशुदा जीवन खराब हो जायेगा। पर ये ज़रूरतें मौजूद हैं, और उनके बारे में विचार ज़रूर आते हैं।
स्त्रियों के लिये, कुछ हद तक, ये संसार बदल गया है। अब सिर्फ सामाजिक और आर्थिक वजह से उनको शादी करना ज़रूरी नहीं रह गया है। उनके पास विकल्प हैं और अब वे अपना रास्ता चुन सकती हैं। वे अब अपनी सामाजिक और आर्थिक स्थितियों को संभाल सकती हैं। सौ साल पहले ऐसा नहीं था, अब उनके लिये कुछ आज़ादी है। उन्हें शादी क्यों करनी चाहिये, इसके कम से कम दो कारण अब नहीं रहे हैं। बाकी के तीन के बारे में उनको सोचना है।
मानसिक रूप से क्या आपको अपने जीवन में किसी साथी की ज़रूरत है? क्या आपको भावनात्मक साथ चाहिये? और, अपनी शारीरिक ज़रूरतों के बारे में आप कितने मजबूत हैं? आपको, अपने व्यक्तिगत स्तर पर, इनके बारे में सोचना चाहिये। ये कोई सामाजिक नुस्खा नहीं है – हर कोई शादी करे या कोई भी शादी न करे! ये इस तरह काम नहीं करेगा। एक व्यक्ति के रूप में आपकी ज़रूरतें कितनी मजबूत हैं? क्या ये कुछ ऐसी चल जाने वाली ज़रूरत है, जिसके परे आप जा सकते हैं? अगर ऐसा है तो शादी मत करिये क्योंकि किसी से आसानी से, ऐसे ही, बंध जाने में कोई फायदा नहीं है। अगर आप फिर भी शादी करते हैं तो सिर्फ दो लोग ही नहीं, सारा परिवार परिणाम झेलता है। मैं ये नहीं कहता कि शादी करना गलत है पर सवाल ये है कि क्या आपको ये चाहिये? हर व्यक्ति को अपने लिये सोचना चाहिये, सिर्फ एक सामाजिक नियम मानकर शादी नहीं करनी चाहिये।
शादी करने में कुछ भी गलत नहीं है पर अगर ज़रूरत न होने के बावजूद आप ये करते हैं तो ये एक अपराध है क्योंकि आप अपने आपको और कम से कम एक और व्यक्ति को दुख ही देंगे। जब किसी ने गौतम बुद्ध से पूछा, “क्या मुझे कोई साथी रखना चाहिये”?, तो वे बोले, “किसी मूर्ख के साथ चलने की बजाय अकेले चलना बेहतर है”! मैं उतना निर्दयी नहीं हूँ। मैं तो ये कह रहा हूँ कि अगर आपको कोई अपने जैसा ही मूर्ख मिल जाता है तो कुछ किया जा सकता है, पर सिर्फ आपकी ज़रूरत के आधार पर न कि इसलिये कि समाज क्या कह रहा है, न ही इसलिये कि दूसरे लोग शादी कर रहे हैं।
शादी या साथ साथ रहना
मेरा ये मानना है कि कम से कम 25 से 30% लोगों को शादी करने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि उनको इसमें बस थोड़ी सी ही रुचि होती है जो जल्दी ही खत्म हो जाती है। 30 से 40% लोगों के लिये ये थोड़ा ज्यादा चलती है और वे शादी कर सकते हैं। 10 से 12 साल तक उन्हें ये अच्छा लगता है, फिर बोझ लगने लगता है। पर, कुछ लोग ऐसे हैं जिनकी ज़रूरतें बहुत मजबूत होती हैं। लगभग 25 से 30% लोगों को ज्यादा लंबे समय की भागीदारी चाहिये – उनको ऐसी व्यवस्था में ज़रूर जाना चाहिये।
आजकल, लोगों ने कुछ दूसरी ही तरह के रास्ते ढूंढ लिये हैं। “ठीक है, मैं शादी नहीं करूँगा, बस उसके साथ रहूँगा”। अगर, आप बस एक ही व्यक्ति के साथ रह रहे हैं तो ये वैसे भी एक तरह से शादी ही है, आपके पास उसका सर्टिफिकेट चाहे हो या ना हो। पर, अगर आप सोचते हैं कि आप हर सप्ताहांत, कोई अलग साथी चुन सकते हैं तो आप अपने आपको गंभीर नुकसान पहुँचा रहे हैं क्योंकि जैसे आपके मन के पास याददाश्त है, वैसे ही आपके शरीर के पास भी, एक ज्यादा मजबूत तरह की याददाश्त है, आपके मन की याददाश्त से कहीं ज्यादा। शरीर की याददाश्त चीजें ग्रहण करती है और उन्हें बनाये रखती है।
शादी का महत्व
भारतीय परंपरा में शारीरिक नज़दीकियों को ऋणानुबंध कहते हैं, जो शरीर की भौतिक याददाश्त है। शारीरिक नज़दीकी के दौरान, शरीर याददाश्त की एक गहरी समझ बना लेता है। इस याददाश्त के आधार पर ये कई प्रकार से जवाब देता और प्रतिक्रिया करता है। अगर, कई लोगों के साथ संबंध बना कर आप इस पर बहुत सारी यादें छाप देते हैं तो शरीर उलझन में पड़ जाता है और आप में एक खास तरह का दुख पैदा होता है। आप ये उन लोगों में देख सकते हैं जो अपने जीवन और भौतिक शरीर को बहुत ही ढीले ढाले ढंग से चलाते हैं। उन्हें वास्तविक आनंद का कुछ पता नहीं चलता। अगर अपने आसपास ऐसे लोगों को देखें तो आप पायेंगे कि वे कभी पूरी तरह से न हँस सकते हैं, न रो सकते हैं। वे ऐसे इसलिये हो जाते हैं क्योंकि शरीर में एक ही जन्म में बहुत सारी उलझनभरी यादें कई तरह से असर करती हैं। तो, सिर्फ साथ साथ रहने का संबंध आपकी ज़रूरतों को संभालने का हल नहीं है। कुछ भी सबसे अच्छा, सर्वश्रेष्ठ नहीं होता। अपना जीवन आपको इस तरह जीना चाहिये कि आप जो कुछ भी कर रहे हैं, वो पूरी तरह से करें।
या तो आप शादी कीजिये, या फिर इन ज़रूरतों के पार, पूरी तरह से, चले जाईये। पर, ये कुछ ऐसा है जो हरेक को अपने व्यक्तिगत स्तर पर देखना चाहिये – आपकी ज़रूरत कितनी मजबूत है? अगर आप इसे, बिना सामाजिक प्रभाव के, साफ तौर पर, स्पष्टता से देखना चाहें तो आप कुछ समय के लिये, जैसे एक महीने तक, बिल्कुल अलग हो जाईये। ये फैसला लेने के समय आपको स्पष्टता की अवस्था में होना चाहिये, आप पर किसी का असर नहीं होना चाहिये। कुछ ध्यान कीजिये और अपने आपको स्पष्टता की अवस्था में ले आईये। उस स्पष्टता में देखिये कि आपकी ज़रूरतें वास्तव में कितनी मज़बूत हैं?
अगर आपको लगता है कि शादी करने की ज़रूरत नहीं है, और आप एक बार ये फैसला कर लेते हैं तो फिर, बार बार न सोचें। जब एक बार, एक तरफ जाने का फैसला कर लें तो फिर दूसरी तरफ न देखें। आपको इनमें से सिर्फ एक ही चीज़ करनी है। अगर आप बीच में ही लटकते रहे तो हमेशा ही उलझन की अवस्था में बने रहेंगे। “सबसे अच्छी चीज़ क्या है”? कुछ भी सबसे अच्छा, सर्वश्रेष्ठ नहीं होता। अपना जीवन आपको इस तरह से जीना चाहिये कि आप जो कुछ भी कर रहे हैं, वो पूरी तरह से करें। अगर आप में ये गुण है तो आप जो कुछ भी करते हैं, वही सबसे अच्छा है। मैं ये नहीं कह रहा कि इसके लिये शादी ही एक रास्ता है, पर, क्या आपके पास इससे बेहतर कोई विकल्प है?
मनुष्य जो संभावनायें ले कर जन्मता है उनके कारण मनुष्य का बच्चा कुछ इस तरह का होता है कि, किसी भी दूसरे प्राणी के बच्चे की तुलना में, वो सबसे ज्यादा असहाय जीव होता है और उसको सबसे ज्यादा सहारों की, सहायता की ज़रूरत होती है। आप किसी कुत्ते के बच्चे को गली रास्ते पर छोड़ दें तो भी, अगर उसे बस खाने को मिलता रहे तो वो आराम से बड़ा हो कर एक बढ़िया कुत्ता बन जायेगा। मनुष्य के बच्चे के साथ ऐसा नहीं है। उसे सिर्फ शारीरिक सहारा ही नहीं चाहिये पर बहुत तरह के सहारे चाहियें और, सबसे ज्यादा, उसे एक स्थिर वातावरण की ज़रूरत होती है। आप जब 3 -4 साल की उम्र के थे तब आप शत प्रतिशत शादी के पक्ष में थे, अपने माता पिता की शादी के पक्ष में। और, जब आप 40 – 50 के हो गये तो आप फिर से शत प्रतिशत शादी के पक्ष में हैं। सिर्फ, 18 से 35 की उम्र में ही आप शादी की पूरी व्यवस्था पर सवाल उठा रहे थे।
शादी का मतलब है कि आप जागरूकता के साथ चुनाव करें
सब के लिये ये न तो अनिवार्य है न ज़रूरी के वे शादी करें और बच्चे पैदा करें। हाँ, अगर मनुष्य जाति खत्म होने के कगार पर होती तो हम हरेक को शादी करने और बच्चे पैदा करने की सलाह देते पर यहाँ तो मनुष्यों की आबादी पहले से ही विस्फोटक ढंग से बढ़ रही है। आज तो ऐसा है कि अगर अगर आप बच्चे पैदा नहीं कर रहे, तो मनुष्य जाति पर उपकार ही कर रहे हैं।
पर, अगर आप शादी करते हैं और, खास तौर पर, बच्चे भी पैदा करते हैं तो ये एक 20 साल का काम है, वो भी अगर बच्चे ठीक ढंग से बढ़ते, पढ़ते और अच्छा काम करते हों। अगर वे ठीक नहीं हैं तो फिर ये आपके लिये जीवन भर का काम हो जाता है। अगर आप ये सब करना चाहते हैं तो कम से कम 20 साल तक एक स्थिर वातावरण बनाने के लिये आपको प्रतिबद्ध होना पड़ेगा नहीं तो आपको ऐसे मामलों में नहीं पड़ना चाहिये कि आप उन्हें बीच में ही छोड़ दें और चलते बनें।एक बात और, आपको एक ही साँस में कभी शादी और तलाक की बात इस तरह नहीं करनी चाहिये जैसे कि ये दोनों एक साथ ही आते हों। थोड़े समय पहले तक भारत में कोई तलाक की बात नहीं करता था। अगर ऐसा कुछ हो जाये कि दो लोगों के बीच कोई बात बिल्कुल ही गलत हो जाती है और उसे ठीक करने का कोई रास्ता नहीं बचता और उन्हें अलग होना ही पड़ता है तो ये बहुत दुर्भाग्यपूर्ण होता है पर ऐसा होता है। लेकिन, आपको शादी के साथ ही इसकी योजना नहीं बनानी चाहिये।
शादीशुदा जीवन चलता रहे, इसके लिये क्या करें?
एक बात जो याद रखने जैसी है, वो ये है कि आप दूसरे पर कोई दया करने के लिये शादी नहीं कर रहे हैं। आप शादी इसलिये कर रहे हैं क्योंकि आपकी ज़रूरतें हैं। अगर दूसरा व्यक्ति आपकी ज़रूरतें पूरी कर रहा है और आप कृतज्ञता से जी रहे हैं तो ज्यादा टकराव की स्थिति नहीं बनेगी। किसी आदर्श स्त्री या आदर्श पुरुष की तलाश न करें, ऐसा कोई नहीं होता। अगर आप ये समझते हैं कि आप अपनी जरूरतों के लिये साथी चाहते हैं तो ऐसा व्यक्ति तलाशिये जो साधारण रूप से आपकी ज़रूरतों के लिये ठीक हो। अगर आप एक दूसरे को स्वीकार कर लेते हैं, आप दोनों को एक दूसरे के लिये परवाह, सम्मान, प्यार, और समावेश का भाव है और आप एक दूसरे की जिम्मेदारी लेते हैं तो ये एक सुंदर रिश्ता हो सकता है।
शादी की एक पवित्र विधि – भूत शुद्धि विवाह
प्रश्नकर्ता:
हाल ही में, आपने एक विवाह प्रक्रिया शुरू की है और मैं जानना चाहता हूँ कि ये प्रक्रिया नव दंपत्ति को और इसमें भाग लेने वाले सभी लोगों को कैसे बेहतर बनाती है? उनके अनुभव क्या हैं और वे किस तरह इसका फायदा ले सकते हैं?
सदगुरु: मेरा ये मानना है कि किसी भी मानवीय गतिविधि में निपुणता, दक्षता होनी चाहिये। जब किसी ने मुझसे ये कहा कि वे दोनों शादी करना चाहते हैं तो मैंने सोचा कि ये प्रक्रिया मुझे ज्यादा निपुणता से करानी चाहिये। लोग ऐसे ही एक दूसरे से बंध जाते हैं पर वो टिकता नहीं है। अगर, आपका बंधने का विचार नहीं है तो अलग बात है, आपकी बात आप जानें। पर, जब आप बंधने की इच्छा रखते हैं तो आपको ये सीखना चाहिये कि अच्छी तरह से, कुशलता से कैसे बंधें? विवाह(शादी की ईशा प्रक्रिया) वही है, बंधने का एक निपुण तरीका!
फर्नीचर में लकड़ी के अलग अलग टुकड़ों को आपस में जोड़ा जाता है। स्क्रू से आप लकड़ी के दो टुकड़ों को आपस में निपुणता से जोड़ सकते हैं। स्क्रू इस्तेमाल करने का फायदा ये है कि आप उसे वापस निकाल भी सकते हैं। अगर आप कील का उपयोग करेंगे तो आप उसे आसानी से निकाल नहीं पायेंगे। एक बार जब आप कील ठोंक देते हैं तो उसे निकालने के लिये, सब कुछ तोड़ना ही पड़ता है।
आप भले ही ये कहें, “मैं उसे पीछे छोड़ कर आगे बढ़ गया हूँ”, पर कहीं न कहीं कोई गहरे घाव रह ही जाते हैं जो आप पर कभी कभी असर डालते रहते हैं।
एक बार, जब मैं कुछ मकान बनते हुए देख रहा था तो मुझे एक बात से अचरज हुआ। सारे मकान में बस कीलें लगायी जा रहीं थीं। अगर उन्होंने स्क्रू का इस्तेमाल किया होता तो शायद हज़ार कीलों का काम 50 स्क्रू से ही हो जाता, बस इंजीनियरिंग थोड़ी ज्यादा करनी पड़ती।
शादी का मकसद क्या है?
किसी भी चीज़ को जोड़ने का काम अच्छी तरह से होना चाहिये, नहीं तो उसका कोई मतलब ही नहीं है। हम इसे ऐसे ढंग से भी जोड़ सकते हैं कि अगर एक मर जाता है तो दूसरा भी मर जाये, अगर एक को आत्मज्ञान हो जाता है तो दूसरे को भी हो जाये। इस तरह बांधने में कुछ सकारात्मक बात भी है, पर, औसतन, जितने लोग बीमार होते हैं, पागल हो जाते हैं, मर जाते हैं, उनकी संख्या उन लोगों से बहुत ज्यादा है जिन्हें आत्मज्ञान होता है। तो हम इस तरह बाँधने का खतरा नहीं उठा सकते।
क्या शादी में जन्म पत्रिका मिलाना महत्वपूर्ण है?
प्रश्नकर्ता:
मैं ज्योतिष के बारे में सच जानना चाहता हूँ। वे कहते हैं कि ये विज्ञान है, पर जब शादी के लिये जन्म पत्रिकायें मिलायी जाती हैं या जब किसी मंगली लड़की की पहले एक पेड़ के साथ शादी करायी जाती है, तो मुझे कुछ अजीब लगता है।
सदगुरु:
जब जन्म पत्रिकायें मिलायी जाती हैं तो शायद ग्रहों की अनुकूलता देखी जा सकती है पर आप इन दो बेवकूफों को कैसे एक दूसरे के अनुकूल बनायेंगे? ये संभव नहीं है। कोई भी इन दोनों को अनुकूल नहीं बना सकता। वे एक दूसरे की जिम्मेदारी लेते हैं, एक दूसरे के साथ भागीदारी की समझ दिखाते हैं और एक दूसरे में अपने जीवन का निवेश करते हैं, सिर्फ तभी कुछ अद्भुत हो सकता है। नहीं तो कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप उन्हें किस तरह से मिलाते हैं! ये कुछ भी काम नहीं करने वाला! इसीलिये, ज्यादातर लोगों के लिये, सभी प्रेम प्रकरण और शादियाँ कुछ ही समय तक ठीक रहते हैं। उसके बाद में, ये एक बड़ी चिंता हो जाती है या लगातार चलने वाला टकराव बन जाता है क्योंकि लोग बस एक दूसरे को मिलाने की कोशिश कर रहे हैं। लोगों को आप मिला नहीं सकते। कोई भी दो मनुष्य एक जैसे नहीं होते। ये उस तरह से काम नहीं करता। अगर आप दूसरे व्यक्ति की खुशहाली को अपनी खुशहाली से ज्यादा महत्व देंगे तो सब कुछ ठीक हो जायेगा।
अगर आपका जीवन जीने का तरीका यही है, आप दूसरे से अपनी खुशी पाना चाहते हैं, तो आप देखेंगे कि कुछ समय बाद रिश्ते में कड़वाहट आयेगी। अगर आपका जीवन ऐसा है कि आप अपनी खुशी को साझा करते हैं, तो सब कुछ सही होगा। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपके ग्रह क्या कहते हैं। ग्रह जो चाहते हैं वो कहेंगे पर जब आप मनुष्य के रूप में आये हैं तो आपको ये जीवन अच्छा बनाना चाहिये। इस धरती पर मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जो अपने जीवन की संरचना बना सकता है। अगर आप अपनी इस योग्यता को छोड़ कर ग्रहों और सितारों जैसी निर्जीव चीजों को अपना भविष्य तय करने देंगे तो जीने का ये तरीका दुखद होगा। कृपया अपना जीवन अपने हाथों में लीजिये।
ये कितनी बेवकूफी भरी बात है कि कोई तीसरा आदमी, जिसे आप जानते भी नहीं हैं, आपको ये बताये कि आप अपने पति या अपनी पत्नी के साथ खुशी से रह सकेंगे या नहीं? ये बात ही बेहूदी है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि किस तरह के बेवकूफ के साथ आप शादी कर रहे/ रहीं हैं, आप सिर्फ ये जिम्मेदारी लीजिये कि आप अच्छी तरह से रहेंगे। यही वो तरीका है, जिससे आप अच्छी तरह ही रहेंगे।
सफल शादी के 5 सूत्र
1 प्यार से भरे दो दिल
अंग्रेज़ी कहावत, “फॉलिंग इन लव”(प्यार में पड़ना) बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि आप प्यार में ऊपर नहीं उठते, प्यार में आप उड़ते भी नहीं हैं, न ही चलते या खड़े रहते हैं। आप बस प्यार में गिर जाते हैं, क्योंकि आप जो कुछ भी हैं, उसका कुछ भाग तो आपको छोड़ना ही होगा। मूल रूप से इसका मतलब ये है कि आपके लिये, खुद से ज्यादा, कोई और महत्वपूर्ण हो गया है। सिर्फ अगर आप अपने बारे में ज्यादा न सोचें तो आप प्यार में पड़ ही जायेंगे। आप जिसे ‘मैं खुद’ समझते हैं, उसके होने का भाव जब कम या खत्म हो जाता है तो आप में प्यार का एक गहरा अहसास हो ही जायेगा।
2 समझ की एक उदार मात्रा बढ़ाईये
किसी के साथ रिश्ता जितना ज्यादा नज़दीकी होता है, आपको उसे समझने की उतनी ही ज्यादा कोशिश करनी चाहिये। जब आप किसी को ज्यादा बेहतर समझेंगे तो वो आपके ज्यादा नज़दीक होगा और ज्यादा प्रिय भी। अगर वो आपको ज्यादा अच्छी तरह समझे तो उसको रिश्ते की नजदीकी का आनंद मिलेगा और अगर आप उसे ज्यादा अच्छी तरह समझे तो इसका आनंद आपको मिलेगा। अगर आपकी उम्मीद ये है कि दूसरा आपको समझे और आपकी हर इच्छा पूरी करे, जब कि आप उसकी सीमितताओं, संभावनाओं, ज़रूरतों और योग्यताओं को नहीं समझते तो फिर संघर्ष ही होगा।
हरेक में कुछ सकारात्मक और कुछ नकारात्मक पहलू होते हैं। अगर आप ये सब अच्छी तरह समझ लें, तो आप रिश्ते को वैसा बना लेंगे जैसा आप चाहते हैं। अगर आप इसे उसकी समझ पर छोड़ देंगे तो ये एक संयोगवश होने वाली बात बन जायेगी। अगर वो बहुत समझदार, उदार है तो चीजें आपके लिये सही होंगी, वरना रिश्ता टूट जायेगा। ऐसा नहीं है कि दूसरे व्यक्ति को बिल्कुल ही, कुछ भी समझ नहीं है। अपनी समझ से आप ऐसी परिस्थितियाँ बना सकते हैं, जहाँ वो आपको ज्यादा बेहतर समझ सके।
3 इस पर थोड़ा काम करें
शादी अपने आप में कोई एक ऐसा सम्पूर्ण काम नहीं है जो आप एक बार में कर लेते हैं और फिर उसे भूल जाते हैं। ये एक सक्रिय भागीदारी है। दो अलग अलग लोग, एक ही मकसद के लिये, साथ आने का तय करते हैं, एक दूसरे के साथ में एक जीवन बनाते, बढ़ाते हैं, आनंदपूर्वक रहते हैं और अपनी खुशहाली को कई गुना बढ़ाते हैं। दो लोग अपने जीवन को एक बना लें, इसमें एक खास सुंदरता है।
भारतीय संस्कृति में, शादी की रस्म को साल में एक बार दोहराया जाता था जिससे दोनों को याद रहे कि वे क्यों साथ साथ आये? इस तरह, उस दिन, फिर से, एक नयी शादी होती थी नहीं तोआपको लगेगा कि आप एक ही शादी में जीवन भर के लिये फँस गये हैं। जागरुकतापूर्वक आप इसमें आये हैं तो आपको इसे जागरूकतापूर्वक ही निभाना भी चाहिये।
4 कुछ आनंद के साथ इसे तरोताज़ा रखें
अगर रिश्तों को वाकई सुंदर रहना है, तो ये बहुत महत्वपूर्ण है कि मनुष्य दूसरे की ओर देखने से पहले, खुद अपने अंदर मुड़ कर, अपने आपको गहराई से देखे। अगर आप अपने आप में ही आनंद का स्रोत बनते हैं और अपने रिश्ते में आप अपना आनंद साझा करने में यकीन रखते हैं, तो किसी के भी साथ आपके रिश्ते अद्भुत होंगे। क्या दुनिया में ऐसा कोई व्यक्ति हो सकता है – जिसे आपके साथ कोई समस्या हो, जब आप अपना आनंद उसके साथ बाँटते हों? नहीं! अगर आप दूसरे व्यक्ति के साथ होने की गहराई का अनुभव करना चाहते हैं, तो आपकी शादीशुदा जिंदगी कभी खुद आपके बारे में नहीं होनी चाहिये। ये हमेशा दूसरे व्यक्ति के बारे में होनी चाहिये। अगर आप दोनों इस तरह की सोच रखते हैं, तो आपकी शादी महज़ एक व्यवस्था बन कर नहीं रह जायेगी बल्कि ये एक वास्तविक मिलन की बात होगी।
5 एक दूसरे को प्रदान करें
अगर आपकी शादी बस ऐसी उम्मीदों का गट्ठर है – कि आप कैसे दूसरे से अपनी खुशियाँ खींच लें और वो आपके लिये सब कुछ स्वर्ग जैसा रखे तो आपके हाथ निराशा ही लगेगी। लोग ऐसा कहते हैं कि शादियाँ स्वर्ग में तय होती हैं। वे ऐसा इसलिये कहते हैं क्योंकि ज्यादातर लोग अपनी शादी को नर्क बना लेते हैं। अगर आपका रिश्ता किसी से कुछ हासिल कर लेने भर का ही है, तो आप कितना हासिल कर पाते हैं, इससे फर्क नहीं पड़ता पर आपकी शादीशुदा जिंदगी में लगातार मुसीबतें आती रहेंगी। पर, अगर आपका रिश्ता दूसरे व्यक्ति को सब कुछ प्रदान करने की बात है, तो सब कुछ अद्भुत रहेगा।
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